श्रद्धा हो तो इन्सान कुछ भी कर सकता है क्योंकि ईश्वर से शक्ति प्राप्त होती रहती है। तभी तो शिमला के काली बाड़ी मंदिर में होने वाली आरती को अंग्रेज भी नहीं रोक पाए थे। काली बाड़ी मंदिर शिमला के कुछ बंगाली श्रद्धालुओं द्वारा सन् 1845 में लगभग बनवाया गया था जबकि इसे बनवाने का काम सन् 1823 में आरंभ हुआ था।
मंदिर के उस समय के दस्तावेजों के अनुसार, यहां की वास्तविक मूर्ति 4 फुट ऊंची थी। यह मंदिर ‘देवी श्यामला’ को समर्पित है और शिमला का यह नाम उनके नाम से ही व्युत्पन्न है.
श्यामला देवी काली को ही कहा जाता है। मंदिर में देवी की लकड़ी की एक मूर्ति प्रतिस्थापित है। दीपावली, नवरात्रि और दुर्गा पूजा जैसे हिंदू त्योहारों के अवसर पर बहुत से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। शिमला में ये एक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका है। वैसे मुख्य रूप से ये मंदिर जाखू हिल पर स्थित था, लेकिन अंग्रेजों ने इसे वर्तमान जगह पर शिफ्ट कर दिया था।
अब यह मंदिर स्कैंडल प्वाइंट से जर्नल पोस्ट आफिस से कुछ गज की दूरी पर स्थित है। यहां की वास्तविक मूर्ति की जगह नई थोड़ी छोटी और ज्यादा आकर्षक मूर्ति की स्थापना कर दी गई है। यहां चंडी देवी की मूर्ति भी स्थापित है। लोगों का कहना है कि ब्रिटिश काल में अंग्रेज मंदिर में शाम को होने वाली आरती के दौरान शोरगुल होने की शिकायत किया करते थे।
तब पुजारियों ने उन्हें ये कहकर समझा लिया कि मंदिर में अंग्रेजों की युद्ध में जीत हो, इसके लिए प्रार्थना की जाती है। इस प्रकार से यहां निरंतर बिना विघ्न के पूजा होती रहती थी और अंग्रेज परेशान नहीं करते थे। आज भी यह मंदिर उस पुराने इतिहास का शिमला में एकमात्र साक्षी है। शिमला में इस मंदिर के अलावा और भी कई दर्शनीय स्थल देखने योग्य हैं।
दूर-दूर से पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं और मंदिर की भव्यता और आसपास के वातावरण को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। कहते हैं कि मंदिर में जो भी मन्नत मांगने आते हैं, माता उन्हें कभी निराश नहीं करती है। यह तो वह स्थल है, जिसने अंग्रेज हकूमत को भी झुका दिया था। भक्तों की इस मंदिर में गहरी आस्था है। नवरात्रों और दुर्गा पूजा के समय भक्तों की इस मंदिर में लंबी कतारें लगती हैं।