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श्रद्धा, आस्था और विश्वास का केंद्र: सिंहेश्वर महादेव मंदिर

सिंहेश्वर धाम को सिंहेश्वर थान के नाम से भी जाना जाता है। यह शिवालय बिहार प्रांत के जिला मधेपुरा के अंतर्गत अवस्थित है। तीन भागों में विभक्त यह शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के प्रतीक माने जाते हैं।

प्राचीन काल से लेकर आज तक श्रद्धा, आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। सतयुग और त्रेता के युग संधि की बेला में शृृंगी ऋषि की तपोस्थली रहा यह स्थान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। ऐसी मान्यता है की शृृंगी  ऋषि ने तपस्या करके यहां त्रिदेव को प्रकट किया था।

सनातन धर्म के तीनों सर्व श्रेष्ठ देवता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर भगवान ने स्वयं उपस्थित होकर शृंगी  ऋषि को दर्शन और वरदान दिया। इतना ही नहीं, उन्हें अपने समक्ष स्थान दिया इसलिए इसका नाम शृृंगेश्वर पड़ा। जो आगे चलकर अपभ्रंश होकर सिंहेश्वर कहलाया।

त्रेता काल की बात है रघुकुल के महान राजा दशरथ की तीन रानियां थी, लेकिन उन्हें कोई संतान नही थी। इससे राजा बहुत दुखी रहता था, अपने इस कष्ट के निवारण के लिए राजा ने कुल गुरु वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से मंत्रणा की। उन दोनों ब्रह्मर्षियों ने उन्हें शृंगी  ऋषि से प्रार्थना करने को कहा।

कुल गुरु की आज्ञा अनुसार राजा ने यहां आकर राजा ने बड़ी श्रद्धा के साथ ऋषि को नमस्कार किया और अपने दुख निवारण के लिए उनसे प्रार्थना की। फिर राजा और ऋषि ने मिलकर सिंहेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की। उसी समय आकाशवाणी हुई कि अपने अभीष्ठ की प्राप्ति हेतु राजा को पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाना होगा।

जिससे राजा के घर में अपने सभी अंशों के साथ अवतरित होऊंगा। बाद में मखोरा नामक स्थान में यज्ञ हुआ जिससे मर्यादा पुरषोत्तम भगवन राम का अवतार संभव हुआ। यह मंदिर वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

मंदिर में पूर्व एवं दक्षिण दिशा में दो द्वार खुले हुए हैं। यहां पार्वती, गणेश ,कार्तिक,भैरव, राम दरवार, राधा-कृष्ण एवं शृृंगी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में दो कुएं एवं शिवालय के उद्गम पर एक विशाल तालाब है।

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