Thursday, November 21st, 2024

इच्छा की देवी माता कामाख्या । जानिये मंदिर की लोकप्रियता का मुख्य कारण ।

माता कामाख्या सभी भक्तों का कल्याण करें💐
माँ कामाख्या या कामेश्वरी को इच्छा की देवी कहा जाता है। कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर उत्तर पूर्व भारत में असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिमी भाग में स्थित नीलाचल पहाड़ी के मध्य में स्थित है। मां कामाख्या देवालय को पृथ्वी पर 51 शक्ति-पीठों में सबसे पवित्र और सबसे पुरातन माना जाता है। यह भारत में व्यापक रूप से प्रचलित तांत्रिक शक्तिवाद पंथ का केंद्रबिंदु है। मां कामाख्या देवी का मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर देवी के रजस्वला की वजह से अधिक प्रसिद्ध है और लोगों के आकर्षण का केंद्र है। मंदिर में एक चट्टान के रूप में बनी योनि से रक्त का स्राव होता है जो इस मंदिर की लोकप्रियता का मुख्य कारण है।

कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास –
माना जाता है कि कामाख्या देवी मंदिर का निर्माण मध्यकाल के दौरान कराया गया था। कोच राजा बिस्व सिंघ ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1553-54 में कराया था। बाद में गौड़ के एक मुस्लिम आक्रमणकारी कालापहाड़ ने मंदिर को नष्ट करा दिया। इसके बाद राजा बिस्व सिंघ के उत्तराधिकारी महान कोच राजा नरनारायण ने अपने भाई चिलाराई के साथ इस स्थान का निरीक्षण किया और इसे पूरी तरह खंडहर में पाया।नारायण ने 1565 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और मंदिर को शाही संरक्षण दिया।17 वीं शताब्दी की शुरुआत में अहोम ने इस मंदिर का निर्माण कई तरह के पत्थरों से कराया जिसका प्रमाण मंदिर के शिलालेख और तांबे की प्लेट से मिलता है। 1897 ई. में भूकंप के कारण मुख्य मंदिर को बहुत नुकसान पहुँचा और कामाख्या के कुछ अन्य मंदिरों के गुंबद गिर गए। कोचबिहार का शाही दरबार बचाव में आया और मरम्मत के लिए मोटी रकम दान की। मंदिर की मरम्मत कई बार की गई। मंदिर को विभिन्न राजाओं का शाही संरक्षण प्राप्त हुआ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती ने अपना विवाह भगवान शंकर के साथ रचाया। लेकिन सती के विवाह से उनके पिता दक्ष प्रसन्न नहीं हुए। जब एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ आयोजित किया तो इसमें उनके पति को नहीं बुलाया जिससे माता सती बिना बुलाए पिता के घर पहुंच गईं। वहां उनके पिता ने भगवान शंकर का अपमान किया। माता सती अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पायीं और हवन कुंड में कूद गईं। पता चलने पर भगवान शिव वहां पहुंचे और सती का शव लेकर तांडव करने लगे। जब उन्हें रोकने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र फेंका तो सती का शव 51 भागों में कटकर विभिन्न स्थानों पर जा गिरा। इसमें से माता सती की योनि और उनका गर्भ जिस स्थान पर गिरा वहीं पर एक मंदिर बनाया गया जिसे कामाख्या देवी मंदिर के नाम से जानते हैं।

कामाख्या देवी मंदिर के बारे में रोचक तथ्य:
कामाख्या देवी का मंदिर भारत में स्थित अन्य देवियों के मंदिरों से काफी अलग है। यही एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां देवी का रजस्वला समाप्त होने के बाद श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

आइये जानते हैं शक्तिपीठ कामाख्या देवी मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
माँ कामाख्या का मंदिर दशमहाविद्याओं यानि देवताओं के दस अवतार त्रिपुरा सुंदरी, मातंगी,कमला,काली,तारा,भुवनेश्वरी,बगलामुखी, छिन्नमस्ता,भैरवी,धूमावती को समर्पित मंदिर हैं। यहां भगवान शिव के पांच मंदिर कामेश्वर, सिद्धेश्वर, केदारेश्वर, अमरत्सोस्वर, अघोर स्थित हैं। शक्तिपीठ मां कामाख्या के मंदिर में प्रसिद्ध अंबुबाची मेला लगता है जो चार दिनों तक चलता है। कामाख्या देवी मंदिर का अंबुबाची मेला बहुत ही लोकप्रिय है और यह मंदिर की कई विशेषताओं में से एक है। यह मंदिर कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण प्रसिद्ध है। माना जाता है कि आषाढ़ महीने के सातवें दिन मां कामाख्या को माहवारी शुरू होती है और जब उनकी माहवारी खत्म होती है तो मेले में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर एक मील ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां श्रद्धालु मां के जयकारे लगाते हुए पहुंचते हैं। कामाख्या देवी मंदिर में जब मेले का आयोजन किया जाता है तब देशभर के तांत्रिक इस मेले में भाग लेने पहुंचते हैं। मंदिर की एक अन्य विशेषता यह है कि जब मां कामाख्या रजस्वला होती हैं तो जलकुंड में पानी की जगह खून बहता है। कामाख्या देवी मंदिर की यह खासियत है कि जब तक देवी में रजस्वला होती हैं,तब तक मंदिर का कपाट बंद रहता है। मंदिर का कपाट बंद होने से पहले यहां एक सफेद कपड़ा बिछाया जाता है और जब कपाट खुलता है तो यह कपड़ा बिल्कुल लाल रहता है। इस लाल कपड़े को अंबुबाची मेले में आये श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मंदिर परिसर में योनि के आकार की एक समतल चट्टान है जिसकी पूजा की जाती है। कामाख्या देवी का मंदिर पशुओं की बलि देने के लिए भी प्रसिद्ध् है लेकिन एक खासियत यह भी है कि यहां मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती है।

कामाख्या देवी मंदिर में पूजा का समय –
सुबह साढ़े पांच बजे कामाख्या देवी को स्नान कराया जाता है और छह बजे नित्य पूजा होती है। इसके बाद सुबह आठ बजे मंदिर का कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। दोपहर एक बजे मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है और देवी को भोग लगाकर प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। दोपहर ढाई बजे मंदिर का कपाट दोबारा से भक्तों के लिए खोला जाता है और रात साढ़े सात बजे कामाख्या देवी की आरती के बाद मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है।

माँ कामाख्या देवी बीज मंत्र –
“क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः”
|| त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये
प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा ||

माँ कामाख्या देवी प्रणाम मंत्र –
कामाख्ये कामसम्पन्ने कामेश्वरि हरप्रिये।
कामनां देहि मे नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते॥
समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व
का कल्याण करो माता कामाख्या भवानी💐
जयति सनातन💐
जयतु भारतं💐
सदा सर्वदासुमंगल💐
हर हर महादेव💐
ॐ नमश्चण्डिकायै💐
जयभवानी