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माँ काँगड़ा देवी के दर्शन करें व जानें प्राचीन इतिहास

Kangra Devi Temple Himachal Pardesh | काँगड़ा देवी मंदिर

कांगड़ा | पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में उन्हे न बुलाने पर उन्होने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे। उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके अंग धरती पर जगह-जगह गिरे। जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था जिसे माँ ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है।

मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है। मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है। खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।

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