केरल में निपाह वायरस से अब तक 11 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। कहा जा रहा है कि ये वायरस चमगादड़ फैला रहे हैं। लोगों को इनसे दूर रहने की सलाह दी गई है। निशाचर और वैम्पायर से तुलना करते हुए दुनियाभर में चमगादड़ों को अशुभ माना जाता है लेकिन कई स्थानों पर इनकी पूजा भी की जाती है। हमारे देश में भी ऐसे कई मंदिर है जो अपने धार्मिक महत्व के साथ चमगादड़ों के बसेरे के कारण मशहूर हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मंदिरों के बारे में जहां बड़ी संख्या में चमगादड़ रहते हैं और पूजे भी जाते हैं।
#1. गुप्त गोदावरी, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
– गुप्त गोदावरी चित्रकूट से 18 किलोमीटर दूर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम और लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान यहां कुछ समय रहे थे। गुप्त गोदावरी 2 गुफाएँ हैं जो पहाड के अंदर हैं जहाँ जल स्तर घुटने जितना है। बड़ी गुफा में दो पत्थर पर नक्काशीदार सिंहासन हैं ।
– प्रवेश द्वार काफी संकरा है इसके कारण इसमें आसानी घुसना नुश्किल होता है। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। इन गुफाओं में हजारों की संख्या में चमगादड़ रहते हैं जो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।
#2. देवीपाटन मंदिर, बलरामपुर (उत्तर प्रदेश)
– 51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन मंदिर में रोजाना आदिशक्ति मां का भोग लगाने के बाद कौवे, कुत्ते, गाय , चमगादड़ व अन्य पक्षियों को भोजन कराने के बाद ही रसोइया किसी को खाना परोसता है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में स्थित इस मंदिर में रोजाना दोपहर 12 बजे व रात 8 बजे भोग लगाया जाता है।
– भोग लगाने के लिए मंदिर के पुजारी एक बर्तन में चावल लेकर बाहर निकलते हैं। जैसे ही घंटे और नगाड़े की आवाज शुरू होती है, तय स्थान पर पुजारी के पहुंचने से पहले ही काफी संख्या में कुत्ते, गाय , चमगादड़ व अन्य पक्षी इकट्ठा हो जाते हैं। मंदिर परिसर में स्थित बरगद के पेड़ पर ही हजारों चमगादड़ों का बसेरा है।
#3. चौरा देवी मंदिर, हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)
– उत्तर प्रदेश हमीरपुर जिले के चौरा देवीमंदिर में लोग चमगादड़ों की पूजा कर इनसे अपने लिए वरदान मांगते हैं। दो नदियों के बीच स्थित इस स्थान पर कभी घना जंगल हुआ करता था। उसी समय करीब 150 साल पहले कुछ चरवाहों ने एक पीपल के पेड़ के तने के पास यहां एक मूर्ति देखी इसके बाद से ही यहां के चरवाहे इसे चौरा देवी ने नाम से पुकारने लगे और पूजा करने लगे। इसी स्थान पर हज़ारों बड़े चमगादड़ भी रहते हैं।
– मंदिर में माँ की आरती के समय में यह चमगादड़ उड़ने लगते हैं और मंदिर की आरती के बाद प्रसाद खा कर यह वापस पेड़ पर चले जाते हैं। यहां के लोग इसे शुभ मानते हैं। उनका मानना है कि ये माता के रक्षक हैं और कुछ इन्हें अच्छी आत्माएं भी मानते हैं जो माँ के भक्त हैं और इसीलिए ये माँ की पूजा करने के लिए आरती में शामिल होते हैं।
#4. प्राचीन हनुमान मंदिर, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
होशंगाबाद स्थित सेठानी घाट के सामने स्थित जोशीपुर जर्रापुर घाट पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। यहीं पर नर्मदा नदी के किनारे स्थित पीपल के पेड़ों पर हजारों चामगादड़ों ने डेरा डाल रखा है। यह चमगादड़ रात को सक्रिय हो जाते हैं। हनुमान जी के मंदिर पर रोजाना सैकड़ो भक्त दर्शन को आते हैं।
– इसके अलावा घाट के नीचे से नाव से आसपास के ग्रामीण एवं व्यवसायी होशंगाबाद नाव से आते-जाते हैं। लेकिन ये चमगादड़ कीसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।
#5. राम – जानकी मंदिर, मुजफ्फरपुर (बिहार)
बिहार के मुजफ्फरपुर से 10 किमी. पूर्व मुशहरी प्रखंड का छपरा मेघ गांव सालों से चमगादड़ों के लिए मशहूर है। लोग इस गांव को बादुर यानी चमगादड़ छपरा के नाम से भी जानते हैं। हालांकि किसी को ठीक से नहीं मालूम है कि ये चमगादड़ यहां कब से रह रहीं हैं। यहां भारी संख्या में चमगादड़ों की मौजूदगी बाहरी लोगों के लिए आकषर्ण का केंद्र रहती हैं। यही कारण है कि यहां काफी संख्या में पर्यटक आते हैं।
– ग्रामीणों का कहना है कि 200 साल पहले यहां एक सिद्ध पुरुष महंत बालादास रहते थे। उन्होंने यहां राम, जानकी और हनुमान का मंदिर बनवाया था। मंदिर के अहाते में स्थित बगीचे के खीरी के पेड़ों पर चमगादड़ों रहते हैं।
#6. वैशाली गढ़ में मानते है लक्ष्मी माता का प्रतीक (बिहार)
– बिहार के वैशाली जिले के सरसई गांव व वैशाली गढ़ में चमगादड़ों की पूजा की जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि चमगादड़ उनकी रक्षा करते हैं। यहां चमगादड़ों को देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक आते हैं।
– यहां चमगादड़ को लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है। इस जगह के लोगों का मानना है कि जहां चमगादड़ का जहां वास होता है वहां कभी धन की कमी नहीं होती।
– ग्रामीणों के अनुसार रात में गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने पर ये चमगादड़ चिल्लाने लगते हैं, जबकि ग्रामीणों पर ये नहीं चिल्लाते।
#7. सास-बहू मंदिर (ग्वालियर)
ग्वालियर किले के में स्थित सास-बहू मंदिर देखने में काफी सुदर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को देखना स्वर्ग के देवी-देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन करने के बराबर माना जाता है।
-इस मंदिर में भी काफी संख्या में चमगादड़ें रहतीं हैं। जो मंदिर की छत पर लटकी रहती हैं।
#8. सुपौल में 50 एकड़ में पले हैं चमगादड़ (बिहार)
– बिहार के सुपौल जिले के लहरनियां गांव में चमगादड़ों को सुख-समृद्धि का प्रतीक मानकर लोग इनकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं इस गांव में इनके लिए अभ्यारण बनाने की पहल भी की जा रही है।
– यहां 50 एकड़ के इस बगीचे में चमगादड़ों के रहने के लिए खास तौर पर पेड़ लगाए गए हैं। यहां हजारों की संख्या में चमगादड़ रहते हैं। गांव वालों का मानना है कि चमगादड़ों के रहने से गांव में कोई महामारी नहीं फैलती।