Wednesday, May 1st, 2024

14 जून योगिनी एकादशी पर करें ये 3 खास उपाय, दूर हो जाएंगे सभी संकट

मुंबई, 12 जून: आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी पापों के प्रायश्चित के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव का ध्यान, भजन और कीर्तन करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। योगिनी एकादशी के व्रत और साधना करने से मुश्किलें दूर होती हैं। इस बार योगनी एकादशी 14 जून को मनाई जाएगी।

योगिनी एकादशी व्रत का नियम

योगिनी एकादशी के दिन स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। उसके बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। श्रीहरि को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी की दाल अर्पित करें। श्री हरि और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। किसी गरीब को जल, अन्न, वस्त्र, जूते और छाता दान करें। इस दिन केवल जल और फलाहार का ही व्रत रखें। पूजा सुबह और शाम दो बार की जाती है।

मानसिक परेशानी दूर करने के उपाय

योगिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए। दिन-रात केवल पानी पिएं। जितना हो सके भगवान शिव की पूजा करें। कम बोलें और किसी पर गुस्सा न करें।

जल्दी नौकरी पाने का उपाय

इस दिन लाल आसन ग्रहण कर उसके चारों कोनों के पास एक बिंदु वाला दीपक जलाएं। आसन पर बैठकर संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करें। नौकरी पाने के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें

पापों का प्रायश्चित कैसे करें?

योगिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए। सुबह-शाम श्रीहरि की पूजा करें। इस एकादशी पर गजेंद्र मोक्ष का पाठ करना श्रेष्ठ होता है। आप भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ भी कर सकते हैं। योगिनी एकादशी के दिन पीपल का वृक्ष लगाएं और गरीबों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।

योगिनी एकादशी की कथा

प्राचीन काल में अलंकापुरी नगर में कुबेर राजा के यहाँ हेम नाम का एक माली रहता था। वे भगवान शंकर की पूजा करने के लिए प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाते थे। एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ घूमने गया, इसलिए उसे फूल लाने में बहुत देर हो गई। दरबार में देर से पहुंचने पर राजा कुबेर ने क्रोधित होकर उन्हें कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया।

राजा के श्राप के कारण हेम माली इधर-उधर भटकता रहा। घूमते-घूमते एक दिन वह संयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। ऋषि ने अपनी यौगिक शक्तियों से अपने दुख का कारण खोज निकाला। ऋषि ने माली से योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।