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वास्तुकला की अनोखी मिसाल है: बृहदेश्वर मंदिर

इसके दुर्ग की ऊंचाई विश्व में सर्वाधिक है और दक्षिण भारत की वास्तुकला की अनोखी मिसाल वाले इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घेषित किया है…

तमिलनाडु के तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट निर्मित है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केंद्रीय गुंबद से लोगों को आकर्षित करता है। बृहदेश्वर मंदिर का रहस्य- राजाराज चोल इस मंदिर के प्रवर्तक थे। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है।

चोल वंश के शासन के समय की वास्तुकला की यह एक श्रेष्ठतम उपलब्धि है। अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए यह मंदिर जाना जाता है।  इसके दुर्ग की ऊंचाई विश्व में सर्वाधिक है और दक्षिण भारत की वास्तुकला की अनोखी मिसाल वाले इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घेषित किया है। मंदिर में सांड की मूर्ति-  मंदिर की ऊंचाई 216 फुट है और संभवतः यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है।

मंदिर का कलश  सबसे ऊपर स्थापित है केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है और इसका वजन 80 टन का है। केवल एक पत्थर से तराशी गई नंदी सांड की मूर्ति प्रवेश द्वार के पास स्थित है जो कि 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है। हर महीने जब भी सताभिषम का सितारा बुलंदी पर हो, तो मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि राजाराज के जन्म के समय यही सितारा अपनी बुलंदी पर था।

एक दूसरा उत्सव कार्तिक के महीने में मनाया जाता है जिसका नाम है कृत्तिका। एक नौ दिवसीय उत्सव वैशाख (मई) महीने में मनाया जाता है और इस दौरान राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता था।  ग्रेनाइट की खदान मंदिर के सौ किलोमीटर की दूरी के क्षेत्र में नहीं है, यह भी हैरानी की बात है कि ग्रेनाइट पर नक्काशी करना बहुत कठिन है, लेकिन फिर भी चोल राजाओं ने ग्रेनाइट पत्थर पर बारीक नक्काशी का कार्य खूबसूरती के साथ करवाया।

इस मंदिर की एक और विशेषता है कि गोपुरम की आकृति की छाया जमीन पर नहीं पड़ती। मंदिर के गर्भगृह में चारों ओर दीवारों पर भित्ती चित्र बने हुए हैं। जिनमें भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया गया है।

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